पिता तांगा चलाकर पालते थे पेट, पानी मिला दूध पीकर ट्रेनिंग, अब हॉकी की रानी को मिला पद्मश्री

टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम मेडल तो जीतने से चूक गई, लेकिन आखिर के कुछ मुकाबलों में जिस तरह की जिद और जूनून टीम ने दिखाई, उसने सारे देश का दिल जीत लिया।

New Delhi, Nov 09 : टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को दिल्ली में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया, रानी की अगुवाई में भारतीय टीम टोक्यो गेम्स में चौथे स्थान पर रही थी, जो इन खेलों में महिला टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था, रानी सिर्फ 15 साल की उम्र में भारतीय हॉकी टीम में शामिल हो गई थी।

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मेडल से चूक गई
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम मेडल तो जीतने से चूक गई, लेकिन आखिर के कुछ मुकाबलों में जिस तरह की जिद और जूनून टीम ने दिखाई, उसने सारे देश का दिल जीत लिया, टीम की इस कायापलट के पीछे जितना योगदान कोच और खिलाड़ियों का था, उतना ही महत्वपूर्ण रोल कप्तान रानी रामपाल का था, रानी ने लगातार हार के बाद भी खिलाड़ियों को टूटने और बिखरने नहीं दिया, इसी का नतीजा रहा, कि भारतीय टीम चौथे नंबर पर रही, ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का ये अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है।

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हॉकी की रानी
रानी को कुछ दिन पहले ही मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया, हालांकि रानी के लिये यहां तक का सफर आसान नहीं रहा है, उनकी कहानी देश के हर शख्स के लिये प्रेरणा है, जो मुफलिसी और तंगहाली से हारकर अपने सपनों को अधूरा छोड़ देता है। बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई रानी के लिये हॉकी खेलना एक ऐसा ख्वाब था, जिसे देखना भी गुनाह था, पिता तांगा चलाते थे, दिन के बमुश्किल 100 रुपये कमा पाते थे, मां लोगों के घरों में काम करती थी, कच्चा मकान था, बारिश के वक्त घर और बाहर का अंतर मिट सा जाता था, क्योंकि बाहर की तरह घर में भी पानी भर जाता था, तब परिवार वाले प्रार्थान करते थे, कि बारिश ही ना हो, क्योंकि उनके लिये तब रात काटना मुश्किल हो जाती थी।

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6 साल से खेल रही हॉकी
रानी रामपाल को हॉकी का शौक तब लगा जब वो सिर्फ 6 साल की थी, रानी के घर के सामने ही हॉकी एकेडमी थी, स्कूल आते-जाते वो बच्चों को हॉकी खेलते देखती तो उनका भी खेलने का मन करता, फिर क्या था, घरवालों को मनाने का सिलसिला शुरु हुआ, बेटी की जिद के आगे घर वाले भी हार गये, रानी का हॉकी स्टिक के साथ सफर शुरु हुआ। शाहाबाद हॉकी एकेडमी में रानी दाखिले के लिये पहुंची, तो उनकी कद-काठी देखकर कोच ने कहा अभी तुम्हें सेहत बनाने की जरुरत है, लेकिन वो जिद पर अड़ी थी, कोच भी नहीं माने, लेकिन रानी ने भी हार नहीं मानी, वो रोज एकेडमी के चक्कर लगाती, एक साल के संघर्ष तथा तपस्या के बाद कोच का दिल भी पिघल गया, उन्हें एकेडमी में दाखिला मिल गया, कोच भी रानी के खेल को देखकर दंग रह गये, लेकिन मुश्किलों भरे सफर की तो ये शुरुआत थी, क्योंकि रानी की घर की माली हालत किसी से छुपी हुई नहीं थी, हॉकी किट, डाइट सबका इंतजाम करना था। कोच ने रानी से ट्रेनिंग पर आने के लिये रोजाना आधा लीटर दूध लाने को कहा, लेकिन उनका परिवार 200 मिलीलीटर से ज्यादा दूध का इंतजाम नहीं कर पाता था, रानी को भी हॉकी खेलने की जिद थी, तो वो दूध में पानी मिलाकर ले जाती थी, ताकि ट्रेनिंग का सिलसिला नहीं थमे, इसी जिद के दम पर वो एक-एक कर सफलता के मुकाम हासिल करती गई, इसके बाद रानी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 15 साल की उम्र में उन्हें भारतीय हॉकी टीम में शामिल किया गया, 2009 में रानी को द यंगेस्ट प्लेयर घोषित किया गया, 2019 में रानी को वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर का भी खिताब मिला, ये पहला मौका था, जब किसी हॉकी खिलाड़ी को ये प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था।