जब मां से भिक्षा मांगने पहुंचे थे योगी आदित्यनाथ, मां रोकर बुलाती रही, लेकिन

मां चुप थी, तभी योगी ने कहा मां भिक्षा दीजिए, मां ने खुद को संभाला और कहा, बेटा क्या हाल बना रखा है, घर में क्या कमी थी, जो भीख मांग रहा है, योगी ने कहा मां संन्यास मेरा धर्म है, एक योगी की भूख भिक्षा से ही मिटेगी।

New Delhi, May 04 : सीएम योगी 3 से 5 मई तक उत्तराखंड में रहेंगे, इस दौरान वो अपने घर भी जाएंगे, मां से भी मिलेंगे, भाई और बहनों से मुलाकात करेंगे, आज से करीब 29 साल पहले वो एक बार घर गये थे, किसी से मिलने नहीं बल्कि पूरी तरह से घर छोड़ने का एक विधान पूरा करने, उस समय मां रो पड़ी थी, योगी भी रो पड़े थे, लेकिन कदम घर के अंदर नहीं रखा, लौट गये। आइये आज हम आपको योगी की उस कहानी के बारे में बताते हैं, जब वो अपनी मां से भिक्षा मांगने पहुंचे थे।

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घर छोड़ दिया
योगी के बचपन का नाम अजय सिंह बिष्ट था, वो 1989 में ऋषिकेश के भरत मंदिर इंटरमीडिएट कॉलेजड से इंटर की पढाई पूरी की, इसी साल पौड़ी के कोटद्वार के डॉ. पीताम्बर दयाल बड़थ्याल हिमालयन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में बीएससी में एडमिशन ले लिया, 1992 में यहां से भी पास हो गये, फिर गोरखपुर यूनिवर्सिटी में फिजिक्स से एमएससी में एडमिशन लिया लेकिन पूरा नहीं किय और घर छोड़कर चले गये, 6 महीने तक घर वालों को पता ही नहीं चला कि बेटा कहां है, पिता आनंद सिंह हर जगह खोजने गये, जहां उनके होने की संभावना थी, लेकिन वो नहीं मिले, फिर किसी ने बताया कि उनका बेटा गोरखपुर के गोरक्षनाथ पीठ में है, वो अब संन्यासी बन चुका है, आनंद सिंह को बहुत दुख हुआ, लेकिन वो कुछ नहीं कर सके।

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भिक्षा लेने घर पहुंचे
संन्यासी बनने के बाद अजय अब योगी आदित्यनाथ बन गये थे, 1993 में अपने गांव पंचूर पहुंचे, पहले की तरह जींस पैंट नहीं बल्कि गेरुआ वस्त्र पहनकर, सिर घुटा कर, दोनों कानों में बड़े- बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर लेकर, Yogi-Adityanath जिसने भी देखा, उसने योगी को पहचानने के लिये अपनी आंखें मली, इसलिये क्योंकि एक बार में कोई पहचान ही नहीं पा रहा था कि वो अजय सिंह बिष्ट हैं। पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब यदा यदा हि योगी में लिखा है, अजय घर के बाहर पहुंचे और भिक्षा के लिये आवाज लगाई, घर की मालकिन आवाज सुनकर दरवाजे पर पहुंचे, तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ , आंखों से आंसूओं की धार फूट पड़ी, जो सामने था, उसे देखकर भी यकीन नहीं हो रहा था, मां के सामने उनका युवा बेटा संन्यासी के वेष में खड़ा था।

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मां से मांगा भिक्षा
मां चुप थी, तभी योगी ने कहा मां भिक्षा दीजिए, मां ने खुद को संभाला और कहा, बेटा क्या हाल बना रखा है, घर में क्या कमी थी, जो भीख मांग रहा है, योगी ने कहा मां संन्यास मेरा धर्म है, एक योगी की भूख भिक्षा से ही मिटेगी, आप भिक्षा में जो कुछ देंगी, वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा। मां को बेटे के इस रुप पर अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा था, उन्होने कहा बेटा तुम पहले घर के अंदर आओ, योगी ने मना कर दिया, और कहा नहीं मैं मैं बिना भिक्षा लिये ना तो घर के भीतर आ सकता हूं और ना ही यहां से जा सकता हूं, जो कुछ भी हो, वो मुझे दीजिए, इसके बाद ही मैं यहां से जाऊंगा। मैं बेटे की जिद के आगे हार गई, घर के भीतर गई, थोड़े चावल और पैसे लाकर योगी के पात्र में डाल दिया, भिक्षा लेने के बाद योगी पीछे मुड़े और वापस चल दिये, आंखों में आंसू लिये मां घर के दरवाजे पर खड़ी होकर अपने बेटे को जाते देखती रही।

कठिन परीक्षा
नवंबर 1993 से 14 फरवरी 1994 तक अजय सिंह बिष्ट को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, लेकिन वो पीछे नहीं हटे, डटे रहे, 15 फरवरी 1994 को गोरक्षापीठाधीस्वर महंत अवैद्यनाथ महाराज ने पूरे विधि विधान से उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, इसके बाद योगी के जीवन का उद्देश्य बदल गया, अजय सिंह बिष्ट संन्यासी बन गये, पिता आनंद सिंह उन्हें देखने गोरखपुर पहुंचे, अपने बेटे को संन्यासी के रुप में देखकर रो पड़े, कहने लगे, बेटा लौट चलो हमारे साथ, लेकिन योगी नहीं गये, पिता निराश होकर लौट गये, उन्हें शायद उम्मीद नहीं थी कि वो बेटा ऐसा करेगा, फिर पत्नी सावित्री के साथ गोरखपुर पहुंचे, बेटे को देख मां रो पड़ी, तब महाराज अवैद्यनाथ मंदिर में ही थी, सावित्री ने उनसे कहा महंत जी मेरे बेटे को लौटा दीजिए, महाराज ने कहा, 4 बेटे हैं तुम्हारे, एक बेटा हमें दे दो, सावित्री को इसके बाद कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, कभी महाराज को देखती, तो कभी अपने बेटे को, आंखों के आंसू सूख गये, फिर वो बाहर की ओर चल पड़ी, 198 में पहली बार योगी गोरखपुर से सांसद बने, लगातार 5 बार 2017 तक इसी सीट से सांसद रहे, फिर 2017 में यूपी के सीएम बन गये।