राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी की एक ना चली, नाराज दीदी का नया पैंतरा, Inside Story

ममता बनर्जी की नाराजगी राष्ट्रपति चुनाव से ही शुरु हो गई थी, ममता की ओर से शरद पवार को उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उनके इंकार करने के बाद यशवंत सिन्हा का नाम आया।

New Delhi, Jul 22 : राष्ट्रपति चुनाव में जहां विपक्ष के सांसदों तथा विधायकों द्वारा एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग किये जाने की खबरें है, तो वहीं उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों के बीच मतभेद एक बार फिर खुलकर सामने आ गये हैं, टीएमसी के रुख से स्पष्ट हो गया है कि वो विपक्षी की ओर से लिये जाने वाले तमाम फैसलों में खुद को केन्द्र में रखे जाने के पक्ष में है, टीएमसी ने उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने के फैसला लिया है, यानी वो किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं करेगी।

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क्या है नाराजगी की वजह
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो टीएमसी की नाराजगी की वजह कांग्रेस नेता माग्रेट अल्वा को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया जाना है, सूत्रों के मुताबिक उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की मीटिंग में टीएमसी को अंतिम समय में सूचना दी गई, Mamata banerjee2 जिसकी वजह से उसका कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं हो सका, हालांकि जब विपक्ष ने माग्रेट अल्वा का नाम तय कर लिया, तो शरद पवार ने ममता बनर्जी से बात की, लेकिन तब तक दीदी नाराज हो चुकी थी।

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राष्ट्रपति चुनाव से ही शुरु हुई थी दीदी की नाराजगी
ममता बनर्जी की नाराजगी राष्ट्रपति चुनाव से ही शुरु हो गई थी, ममता की ओर से शरद पवार को उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उनके इंकार करने के बाद यशवंत सिन्हा का नाम आया, ये नाम टीएमसी की ओर से नहीं बल्कि माकपा की ओर से सुझाया गया, लेकिन तब शरद पवार के अनुरोध पर ममता दीदी मान गई, हालांकि बाद में टीएमसी ने ये जताने की कोशिश भी की, कि यशवंत सिन्हा उनकी ही पसंद हैं, जबकि असलियत ऐसा नहीं था।

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टीएमसी की एक नहीं चली
राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी से बाहर ये संदेश गया कि ममता विपक्ष राजनीति के केन्द्र में है, वो ऐसा ही चाहती भी हैं, इसलिये वो पवार को आगे कर रही थी, लेकिन सच्चाई ये है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों उम्मीदवार तय करने में ममता दीदी की नहीं चली, यही उनकी नाराजगी की असल वजह है। mamata banerjee उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की जीत लगभग तय है, इसलिये प्रत्यक्ष रुप से टीएमसी के इस फैसले से चुनाव पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन बार-बार विपक्ष एकजुट होने की बात करता है, लेकिन हकीकत एकदम उलट है, खुद कई मौकों पर विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में जुटी टीएमसी खुद ही विपक्ष से अलग खड़ी होती है, कारण जो भी हो, लेकिन इसका सीधा संदेश विपक्षी एकता के खिलाफ है।