नितिन गडकरी को ‘किनारे’ करने के पीछे बीजेपी की है खास रणनीति, महाराष्ट्र तक दिखेगा असर

नितिन गडकरी अपने बेबाक बयानों को लेकर भी चर्चा में रहे हैं, राजनीति को लेकर उनकी अपनी अलग सोच भी जगजाहिर होती रही है, हाल ही में उन्होने एक कार्यक्रम में मौजूदा राजनीति पर सवाल खड़े किये थे, उन्होने संकेत दिये थे, कि अब राजनीति उनके लिये बहुत ज्यादा रुचिकर नहीं है।

New Delhi, Aug 18 : बीजेपी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था केन्द्रीय संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दिया गया है, ये बीजेपी की भावी राजनीति से जुड़ा लग रहा है, ये फैसला पार्टी के अंदरुनी घटनाक्रमों को भी प्रभावित करने वाला है, नया घटनाक्रम पार्टी के भीतर उनके राजनीतिक वजूद को भी प्रभावित करेगा ही, साथ ही उनकी चुनावी राजनीति पर भी असर डालेगा।

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राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर चर्चा में आये
महाराष्ट्र की राजनीति से एकाएक साल 2009 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर गडकरी राष्ट्रीय राजनीत में उभरे, लेकिन अब वो बीजेपी के केन्द्रीय संगठन में अहम भूमिका से बाहर हैं, वो मोदी सरकार में मंत्री हैं, Nitin Gadkari पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं, लेकिन केन्द्रीय संसदीय बोर्ड तथा केन्द्रीय चुनाव समिति से अब बाहर रहेंगे, इससे पार्टी के भीतर उनका कद भी प्रभावित होगा।

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अलग सोच जाहिर करते रहे हैं नितिन
नितिन गडकरी अपने बेबाक बयानों को लेकर भी चर्चा में रहे हैं, राजनीति को लेकर उनकी अपनी अलग सोच भी जगजाहिर होती रही है, हाल ही में उन्होने एक कार्यक्रम में मौजूदा राजनीति पर सवाल खड़े किये थे, उन्होने संकेत दिये थे, कि अब राजनीति उनके लिये बहुत ज्यादा रुचिकर नहीं है, हालांकि नितिन गडकरी को बीजेपी संगठन में कई बदलाव के लिये भी जाना जाता है, अपनी अलग सोच और शैली के कारण कई बार वो सबके साथ समन्वय बनाने में सफल नहीं रहे। केन्द्रीय मंत्री के रुप में उनके काम की खूब सराहना होती है, देशभर में फैले राजमार्गों के जाल को लेकर गडकरी की तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं, लेकिन पार्टी के अंदरुनी समीकरणों में उन्हें दिक्कत होती है, अपने बेबाक बयान से कई बार विवाद पैदा कर जाते हैं।

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पार्टी ने दिया बड़ा संदेश
बीजेपी हाईकमान ने नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड तथा केन्द्रीय चुनाव समिति में शामिल नहीं करके बड़ा संदेश दिया है, पार्टी व्यक्ति के बजाय विचारधारा की बात करती है, इसके विस्तार में जो भी जरुरी होगा, वो किया जाएग, इसके पहले पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल गठित कर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी की सक्रिय राजनीति से अलग कर उसमें शामिल किया था। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह से विचारधारा के एजेंडे को बीते सालों में तेजी से लागू किया है, इसका असर सरकार से लेकर संगठन तक देखने को मिला है, इसमें किसी एक नेता की बात ना की जाए तो व्यक्ति की वजह विचारधारा ही हावी दिखी।

महाराष्ट्र की सियासत पर असर
महाराष्ट्र की राजनीति में भी इसका असर दिखेगा, पार्टी में नितिन गडकरी की जगह उनके ही गृह नगर नागपुर से आने वाले देवेन्द्र फडण्वीस का कद बढा है, हाल ही में जब शिवसेना के बागी गुट के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई, तो फडण्वीस सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें डिप्टी सीएम के लिये राजी किया, अब केन्द्रीय चुनाव समिति में शामिल कर पार्टी ने उनके कद को बड़ा किया है। गडकरी और फडण्वीस दोनों आरएसएस के करीबी रहे हैं, ऐसे में बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा लिया गया कोई भी फैसला संघ की सहमति से ही लिया जाता है, हाल ही में हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने अपने संगठन को अगले 25 सालों की जरुरतों के अनुसार तैयार करने का आह्वान किया था, उसमें नये नेताओं को आगे भी बढाना है, यही वजह है कि भूपेन्द्र यादव और देवेन्द्र फडण्वीस जैसे नेताओं को पार्टी में काफी महत्व दिया गया है।