संजय पुगलिया- परिवार चाहता था IAS बने, 2000 रुपये की नौकरी से शुरुआत, अब बने NDTV बोर्ड के डायरेक्टर

संजय पुगलिया मूल रुप से झारखंड के साहिबगंज जिले के रहने वाले हैं, वो दो भाई हैं, इनके पिता जूट, कपड़ा तथा खाद्यान्न का व्यापार करते थे, संजय की पत्नी का नाम संगीता पुगलिया है।

New Delhi, Dec 06 : चर्चित वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया एनडीटीवी के प्रमोटर बोर्ड का हिस्सा बन गये हैं, एनडीटीवी के संस्थापकों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के इस्तीफे के बाद जिन तीन लोगों को बोर्ड ने बतौर डायरेक्टर शामिल किया है, उनमें संजय पुगलिया का भी नाम शामिल है, मालूम हो कि अडानी समूह ने 2021 में संजय पुगलिया को अपनी मीडिया विंग एएमजी मीडिया में बतौर सीईओ और प्रधान संपादक नियुक्त किया था।

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कौन हैं संजय पुगलिया
संजय पुगलिया मूल रुप से झारखंड के साहिबगंज जिले के रहने वाले हैं, वो दो भाई हैं, इनके पिता जूट, कपड़ा तथा खाद्यान्न का व्यापार करते थे, संजय की पत्नी का नाम संगीता पुगलिया है, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार संजय के माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो पत्रकार बनें, इसलिये इसका तीखा विरोध किया था। जबकि संजय कहते हैं कि मैंने शुरु से ही तय कर लिया था कि पारिवारिक बिजनेस कतई नहीं करना है, बल्कि अपना खुद का नाम बनाना है, एक वेबसाइट को दिये इंटरव्यू में उन्होने बताया कि मैं बिजनेस नहीं करना चाहता था, मेरे सामने आईएएस या आईपीएस जैसे विकल्प रखे गये, लेकिन मैं पढाई में औसत था, मन नहीं लगता था, हमेशा खुद से सवाल करता था, ये क्यों पढ रहा हूं, इससे क्या हासिल है।

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लाइफस्टाइल
इंटरव्यू में संजय पुगलिया ने बताया था कि ज्यादातर वीकेंड पर वो अपनी पत्नी के साथ समय बिताना पसंद करते हैं, साथ ही कहीं फिल्म देखने जाते हैं, या फिर कहीं किसी शांत जगह पर डिनर करना पसंद करते हैं, पुगलिया ने बताया कि उन्हें यात्रा करना बेहद पसंद है, यदि किसी को घूमना पसंद है, तो वो लॉस वेगास की यात्रा जरुर करे, साथ ही उन्होने बताया कि उन्हें साउथ मुंबई में सी लाउंज पर समय बिताना पसंद है।

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पत्रकारिता में कैसे आये
उन्होने बताया कि 80 का दशक उथल-पुथल भरा रहा, इमरजेंसी के ठीक बाद मीडिया लोकतांत्रिक मसलों पर खूब मुखर हो गई, इस दौर में एक दिन मेरी नजर रविवार मैग्जीन पर पड़ी, जिसके संपादक एसपी सिंह थे, मैं उस मैग्जीन से इतना प्रभावित हुआ, कि उसी समय पत्रकारिता में करियर बनाने का फैसला ले लिया, संजय ने अपने घर वालों खासकर पिता के तमाम विरोध के बाद भी 1982 में घर छोड़ दिया और मुंबई आ गये, 2 हजार रुपये की मासिक सैलरी पर नवभारत टाइम्स में नौकरी की शुरुआत की, वो करीब 10 साल एनबीटी में रहे, फिर दिल्ली आ गये, यहां तीन साल तक बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ काम किया, बाद में आजतक में डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर के रुप में ज्वाइन किया, फिर 2000 में कुछ दिनों के लिये ऑस्ट्रेलिया के नाइन नेटवर्क से जुड़े, 2001 में उन्होने जी न्यूज बतौर संपादक ज्वाइन किया।

आपातकाल में देना चाहते थे गिरफ्तारी
द क्विंट के लिये लिखे एक संस्मरण में उन्होने विस्तार से बताया है कि किस तरह इमरजेंसी के दिनों में वो एक्टिव थे, उन्होने लिखा, इमरजेंसी से ठीक पहले जेपी आंदोलन तेज हो गया था, तब गिरफ्तारी देने की प्रथा थी, मैंने भी सोचा था कि विरोध प्रदर्शनों में शामिल होउंगा, अपनी गिरफ्तारी दूंगा, लेकिन मेरी उम्र आड़े आ गई, जब मेरी गिरफ्तारी नहीं हुई, तो जेल की ओर पैदल ही चल पड़ा था, जब पहुंचा तो देखा जेल छोटी थी, सैकड़ों लोग गिरफ्तार हो चुके थे, पुलिस ने जेल के बाहर एक खुला जेल जैसा शिविर स्थापित किया, जहां इन गिरफ्तार लोगों को एक दिन रहना था, पिकनिक जैसा लग रहा था, जब वहां पहुंचा, तो मुझे उस समूह में शामिल होने से किसी ने नहीं रोका, मैंने खुद को दिलासा दिया कि मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया है।