मां के लिये जब पीएम मोदी ने लिखी थी मन की बात, एक-एक शब्द लोगों को झकझोर रहा

मां के जन्मदिन पर लेटर में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा था कि मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है, जिंदगी की ये वो भावना होती है, जिसमें धैर्य, स्नेह, विश्वास कितना कुछ समाया होता है।

New Delhi, Dec 30 : पीएम नरेन्द्र मोदी की मां हीराबेन का निधन हो गया है, गुजरात के अहमदाबाद स्थित यूएन अस्पताल में प्रधानमंत्री की मां ने अंतिम सांस ली, आज शुक्रवार सुबह तड़के 3.30 बजे हीराबेन ने दुनिया को अलविदा कह दिया, पीएम मोदी ने ट्वीट कर मां को श्रद्धांजलि दी है, साथ ही अपने जीवन में उनके योगदान को याद किया है, इसी साल 18 जून को पीएम मोदी की मां का जन्मदिन था, वो अपने 100वें साल में प्रवेश कर गई थी, मां के जन्मदिन पर पीएम मोदी ने मां के नाम एक लेटर लिखा था, आइये जानते हैं कि मां के नाम इस लेटर में पीएम ने क्या कहा था।

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मां के लिये मन की बात
मां के जन्मदिन पर लेटर में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा था कि मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है, जिंदगी की ये वो भावना होती है, जिसमें धैर्य, स्नेह, विश्वास कितना कुछ समाया होता है, दुनिया की कोई भी जगह हो, कोई देश हो, pm-modi प्रत्येक संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह अपनी मां के लिये होता है, मां सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढती, हमारा मन, व्यक्तित्व और आत्मविश्वास भी गढती है, मां ऐसा करते हुए खुद को अपनी संतान के लिये खपा देती है, मां खुद को भूला देती है।

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मां की तपस्या का जिक्र
पीएम मोदी ने ये भी लिखा, मेरी मां जितनी साधारण है, उतनी ही असाधारण भी, ठीक वैसे, जैसे प्रत्येक मां होती है, मां की तपस्या संतान को सही इंसान बनाती है, मां की ममता संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है, वो एक व्यक्ति नहीं है, मां एक व्यक्तित्व नहीं एक स्वरुप है, हमारे यहां कहा जाता है कि जैसा भक्त वैसा भगवान, ऐसे ही अपने मन के भाव के मुताबिक मां के स्वरुप को हम अनुभव कर सकते हैं।

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क्या था पीएम मोदी की मां का दर्द
पीएम ने अपने लेटर में लिखा था, मेरी मां का जन्म मेहसाणा के विसनगर में हुआ था, ये वडनगर से बहुत दूर नहीं है, मेरी नानी का प्यार मेरी मां को नसीब नहीं हुआ था, बचपन मां के बिना बीता, वो अपनी मां से कभी जिद नहीं कर पाई, वो उनके आंचल में कभी सिर नहीं छिपा पाई, अक्षर ज्ञान भी मां को नसीब नहीं हुआ, उन्होने कभी स्कूल का दरवाजा नहीं देखा, उन्होने सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव देखा। इन परिस्थितियों को जोड़कर देखें, तो आज के समय में हम कल्पना कर सकते हैं कि मेरी मां का बचपना कितना मुश्किलों भरा था, ईश्वर ने शायद उनके जीवन को इसी तरह से गढने की सोची थी, आज उन हालातों के बारे में मां सोचती है, तो यही कहती है कि ये इच्छा ईश्वर की ही रही होगी, लेकिन मां को खोने का, चेहरा तक ना देख पाने का दर्द उनका आज भी है।

गरीबी में गुजरे दिन
पीएम ने लेटर में लिखा था वडनगर में जिस मकान में हम लोग रहते थे, बहुत छोटा था, खिड़की नहीं थी, बाथरुम, शौचालय नहीं था, उसमें मां-पिताजी तथा हम सभी भाई-बहन रहा करते थे, जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी होता है, लेकिन मेरे माता-पिता की ये विशेषता थी कि अभाव में भी उन्होने कभी तनाव को घर में हावी नहीं होने दिया, अपनी-अपनी जिम्मेदारियां दोनों ने साझा की हुई थी। आखिर में पीएम ने लिखा, मैं अपनी माता की इस जीवन यात्रा में भारत की समूची मातृशक्ति के त्याग, तप और योगदान के दर्शन करता हूं, अपनी माता और उनके जैसी करोड़ों नारियों के सामर्थ्य को जब देखता हूं, तो कोई भी लक्ष्य मुझे ऐसा नहीं दिखता, जो देश की बहनों, बेटियों के लिये असंभव हो।