स्वतंत्रता सेनानी का पोता कैसे बना गैंगस्टर, दिलचस्प है 5 बार सांसद आनंद मोहन की कहानी

बिहार में जब भी बाहुबली नेताओं की बात होती है, तो आनंद मोहन का नाम जरुर लिया जाता है, 90 के दशक में बिहार में ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था, कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी।

New Delhi, Apr 27 : बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह एक बार फिर से जबरदस्त चर्चा में हैं, वो सहरसा जेल से बाहर आ चुके हैं, आनंद मोहन डीएम के हत्या के आरोप में सजा काट रहे थे, आनंद मोहन को जेल से निकालने के लिये सीएम नीतीश कुमार ने कानून में ही बदलाव कर दिया, उनके जेल से बाहर आने की सबसे बड़ी रुकावट बना बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481(आई) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था।

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नाइनटीज के बाहुबली
बिहार में जब भी बाहुबली नेताओं की बात होती है, तो आनंद मोहन का नाम जरुर लिया जाता है, 90 के दशक में बिहार में ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था, कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी, अपनी-अपनी जातियों के प्रोटेक्शन को लेकर आये दिन हत्या की खबरें आती थी, ये लालू प्रसाद यादव का दौर था, जहां मंडल और कमंडल की जोर आजमाइश चल रही थी, उसी दौर में आनंद मोहन लालू विरोध का चेहरा थे, 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी, उन पर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं।

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जेपी आंदोलन से सियासत में एंट्री
आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया से आते हैं, उनके दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, इसके अलावा आनंद मोहन की एक पहचान गैंगस्टर की थी, जेपी आंदोलन के दौरान उन्हें 2 साल जेल में रहना पड़ा था, जेपी आंदोलन के जरिये ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आये, 1990 में सहरसा के महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते, तब बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव थे, सवर्णों के हक के लिये उन्होने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी बना ली, लालू विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे।

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वो वाकया जिसकी वजह से जेल पहुंच गये
साल 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी का नेता तथा गैंग्स्टर छोटन शुक्ला पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था, उसकी शवयात्रा में हजारों की भीड़ थी, जिसकी अगुवाई आनंद मोहन कर रहे थे, इसी दौरान भीड़ पर काबू पाने निकले गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या को आनंद मोहन ने उनकी गाड़ी से निकाला, तथा भीड़ के हाथों सौंप दिया, सरेआम उन पर पत्थर मारे गये, उन्हें गोली मार दी गई, कृष्णैय्या की हत्या के आरोप में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई गई।

जेल से लड़ा चुनाव और जीते भी
लोकप्रियता के चरम पर होने के बावजूद पीपल्स पार्टी प्रमुख आनंद मोहन 1995 विधानसभा चुनाव हार गये, फिर समता पार्टी के टिकट पर 1996 आम चुनाव में शिवहर लोकसभा सीट से जीते, जेल में होने के बावजूद वो जीते, दोबारा 1999 में भी इसी सीट से जीते। आनंद मोहन आजाद भारत के पहले नेता थे, जिन्हें फांसी की सजा हुई थी, हालांकि बाद में इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया, आनंद मोहन तब से जेल में हैं, पेरोल पर बाहर आते रहते हैं, आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी सांसद रही हैं, उनके बेटे चेतन आनंद फिलहाल शिवहर से राजद विधायक हैं, बिहार में अगड़ी जातियों का कुल 12 फीसदी वोट है, जिसमें करीब 4 फीसदी राजपूत है, बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का दबदबा रहा है, आनंद मोहन को बाहर निकालकर नीतीश ने अपने वोटबैंक को एकजुट करने की कोशिश की है, क्योंकि अपनी बिरादरी में आनंद मोहन की आज भी अच्छी पकड़ है, उनेके समर्थक उन्हें जेल से रिहा करने की मांग करते रहते थे।