बुफे सिस्टम – कुछ परम्पराए ,संस्कार और रीति रिवाजों का विलुप्त हो जाना बेहद चुभता है

शायद यह बुफे सिस्टम बुफेलो से बना होगा । बुफेलो की तरह भीड़ को कुचलते – चीरते हुए आगे बढिये और अपना आहार जुगाड़ लो , यानी बुफे लो ।

New Delhi, Jan 22 : कुछ परम्पराए ,संस्कार और रीति रिवाजों का विलुप्त हो जाना बेहद चुभता है। किसी आयोजन में पंगत लगाकर खिलाने और खाने का मजा ही और होता है । यह मुआ बुफे सिस्टम कभी कभी दरिद्र नारायण भोज जैसा लगता है। निमंत्रण पत्र में प्रीतिभोज का समय दिया रहेगा — सात बजे से आपके आने तक। आप सात बजे पहुच गए तो समझिए कि आप सबसे महान दरिद्र हैं। उस समय खाना तो क्या चाय काउंटर भी नही खुलता है ।

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अब आप अकेले गए हैं तो जबरन किसी से दोस्ती गांठकर मौसम और महंगाई पर वार्ता कीजिये । कनखी से देखते रहिये कि चाय सूप का काउंटर खुला या नही। खरामा खरामा करते हुए चाय कॉफी खुल गया तो भाई लोग उधर समूह में ही कूच कर देते हैं । चाट – लिट्टी , चाऊ मीन का काउंटर खुला तो कनखी से ताक रही भीड़ सारे शर्म लाज ताक पर रखकर आक्रमण कर देती है । सर्विस दे रहे लड़कों को सख्त हिदायत होती है कि दो चिमटा चाउमीन पर अधिकतम दो पीस चिल्ली पनीर डालना । अब नंगा खायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या । फुचका खाना तो आईएएस निकालने से भी बड़ी चुनौती है ।लड़कियों , महिलाओं और बच्चों की फौज से लोहा ले लिए तो दस पंद्रह मिनट में एक दो टूटे फुचके हाथ लगेंगे ।  स्साला एक टूटल फुचका के लिए दस दस मिनट तक भिखमंगो जैसा हाथ पसारना – अल्ला के नाम पर दे दे बाबा । इससे बढ़िया बगल के चौराहे पर खोमचे की सेवा ले लीजिए और दस रुपल्ली में पाँच खाकर आत्मिक सुख प्राप्त कीजिये ।

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लाज शर्म छोड़कर आप इस स्टार्टर और हाई टी का स्वाद लेने में सफल हो गए तो अब मेजबान को लिफाफा देना आपका फर्ज बनता है। अभी तक मेन कोर्स में आप गए नही हैं । लिफाफा गटकने के बाद मेजबान बड़े हक़ के साथ कहेगा — खाना खाकर जाइये। खाने का काउंटर अभी खुला भी नही है सो कड़कड़ाती ठंड में स्लीवलेस पहनी सुंदरियों का मचलना देखिए औऱ इस पहेली को समझने की कोशिश भी करते रहिए कि आखिर इन्हें ठंड क्यो नही लगती है ? अब नौ बजने वाले है । मेन कोर्स में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए रणनीति तैयार करते रहिए कि दही बडे से शुरू किया जाए या सीधे पालक पनीर पर धावा बोला जाए । ध्यान रहे आपके दुश्मन भी इसी ताक में हैं । न तो कोई आइटम छोड़ना है और न ही दुबारा रणक्षेत्र में जाना है। अब आपकी काबिलियत पर निर्भर है कि जाम लगे शाहीन बाग से आपको कैसे निकलना है।

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अगर आपको कोई आइटम पसन्द आया और आपको ‘पोरसा ‘ लेने की इच्छा है तो यहाँ पर आपको परमहंस बनने की जरूरत है क्योंकि मशरूम दो प्याजा की कड़ाही पर फ्रेश दरिद्रों ने धावा बोल रखा है। अपनी कसक और कसर मिठाई और आइस क्रीम पर उतारने की कोशिश कीजिये। गाजर का हलवा और राबड़ी जलेबी थोड़ा राहत दिला सकते हैं बशर्ते मेन कोर्स को निपटाने के दौरान आप खाने से अधिक नए बने दोस्त से मौसम और महंगाई पर चर्चा करना छोड़ पनीर पर कंसंट्रेट किये हो । देर करने पर स्वीट डिश हासिल करना भी कड़वा ही होगा । सलाद पापड़ के चक्कर मे समय नही गंवाना है। हबर हबर खाइये और चुपचाप निकल जाइये । पानी तो घरे भी भेंटा जाएगा इसलिए 201 रुपया में जितना वसूल कर सकते हैं कर लीजिए । सच कहें , 201 रुपया में यह भोजन और तरीका भी दरिद्रनारायण भोज जैसा ही है । अब अगर आप 11 बजे रात को पहुँचियेगा तो आपको कोने में वेटरों के साथ ही बचा खुचा भोजन नसीब होगा । लेकिन कार्ड में तो लिखा है — सात बजे से आपके आने तक ।अब समझिए कि घटंत से बढ़कर लिखन्त थोड़े होता है । शायद यह बुफे सिस्टम बुफेलो से बना होगा । बुफेलो की तरह भीड़ को कुचलते – चीरते हुए आगे बढिये और अपना आहार जुगाड़ लो , यानी बुफे लो ।
‌—- इति श्री रेवाखण्डे बुफे महात्म्य ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)