कोरोनाः बुजुर्गो पर भी ध्यान दें
केंद्र और राज्य सरकारें इन सब पीड़ितों की मदद कर रही हैं लेकिन वे वयोवृद्ध लोगों पर विशेष ध्यान दें, यह जरुरी है।
New Delhi, May 25 : आज सुबह-सुबह दो ऐसे बुजुर्ग साथियों के फोन आ गए, जिनकी आयु 80 और 90 के बीच है। उन्होंने कहा कि आप दुनिया के हर मसले पर लिख रहे हैं लेकिन हम बूढ़ों की दुर्दशा पर किसी का ध्यान ही नहीं है। मैं उनके बारे में सोचने लगा, इतने में ही अखबारों का बंडल आ गया। उनमें कई मार्मिक खबरों पर नज़र गई लेकिन मुंबई की एक खबर ने मेरे मित्रों की बात पर मुहर लगा दी।
वह खबर यह है कि मुंबई के प्रसिद्ध मजदूर नेता दत्ता सामंत के बड़े भाई पुरुषोत्तम सामंत ने आत्महत्या कर ली। उनकी उम्र 92 वर्ष थी। वे भी मजदूर-नेता थे। उन्होंने अपने बनाए फंदे पर लटकने के पहले जो अपना मृत्युनामा छोड़ा, उसमें साफ-साफ लिखा कि वे कोरोना-संकट से इतने त्रस्त हो गए हैं कि अब वे जीवन का अंत कर रहे हैं। वे कोरोना से नहीं, उसके संकट से त्रस्त थे। कौन सहृदय व्यक्ति इस संकट से त्रस्त नहीं होगा ? पता नहीं कितने लोग रोज आत्महत्या कर रहे हैं, कितने लोग सैकड़ों मील पैदल चलते-चलते रास्तों में दम तोड़ रहे हैं, कितने लोग भूख और प्यास से तड़फ-तड़फकर मर रहे हैं, कितने ही लोग मजबूरन फलों और सब्जियों के ठेलों को लूट रहे हैं, कितने ही लोग पौराणिक नायक श्रवणकुमार की तरह अपने बुजुर्गों और बच्चों को अपने कंधों और साइकिलों पर ढो रहे हैं।
केंद्र और राज्य सरकारें इन सब पीड़ितों की मदद कर रही हैं लेकिन वे वयोवृद्ध लोगों पर विशेष ध्यान दें, यह जरुरी है। कोरोना के सबसे ज्यादा शिकार इसी आयु वर्ग के लोग हो रहे हैं। बुजुर्गों के इलाज की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। प्रचार-माध्यमों के द्वारा बताया जाना चाहिए कि अमुक मोहल्ले के बुजुर्ग को अमुक अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए। अनेक शारीरिक क्षीणताओं के साथ-साथ उनका अकेलापन उन्हें खाए जा रहा है। क्या ही अच्छा हो कि वे भजन-संगीत सुनें, महापुरुषों की रोचक जीवनियां पढ़ें, घर में बच्चे हों तो उनके साथ घरेलू खेल खेलें। उन्हें सुबह-सुबह बगीचों में सैर करने, हल्के व्यायाम और आसन करने और शारीरिक दूरी का ध्यान रखते हुए लोगों से मिलने-जुलने और बातों से दिल हल्का करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
सरकारें इसका उलटा कर रही हैं। सरकारें उन्हें कुछ गुजारा-भत्ता भी दें तो अच्छा रहे। ज्यादातर बुजुर्ग ऐसे हैं, जिन्हें कोई पेंशन नहीं मिलती। कुछ 90 साल से ऊपर के बुजुर्गों ने बताया कि उनके घरेलू सेवक अपने गांव भाग गए तो उनके पड़ौसियों ने अपने सेवक उनके लिए भेज दिए। इस संकट के समय कुछ घरों के लोग घर के बुजुर्गों को ही बोझा मानने लगे हैं। ऐसी विकट स्थिति में सरकार क्या कर सकती है ? बेहतर तो यह है कि यार-दोस्त, रिश्तेदार और अड़ौसी-पड़ौसी ही अपना फर्ज निभाएं।