‘नवीन पटनायक भले ही क्रिश्चियन हों पर असल मायने में धर्म निरपेक्ष हैं’ !

नवीन पटनायक ओडीसा के मुख्यमंत्री हैं पर वे ओड़िया नहीं बोल पाते जबकि हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी के वे मास्टर हैं

New Delhi, Aug 05 : मूर्ख, धर्मांध और जाहिल हर तरफ होते हैं. कल बिहार के एक मौलाना द्वारा मंत्री खुर्शीद आलम को जमात बाहर कर देने पर मैंने एक पोस्ट लिखी, उस पोस्ट को हिंदुओं ने तो हाथों-हाथ लिया लेकिन मुस्लिम या तो हमलावर हुए अथवा चुप साध गए. वाह-वाह करने वाले हिंदू मूर्खों ने सवाल उठाया कि पोस्ट में बात तो सही कही गई है लेकिन नवीन पटनायक के बारे में गलत लिखा गया है कि वे ईसाई हैं।

Advertisement

बहुत से धर्मान्ध हिंदुओं की आत्मा, अगर होती हो, इतनी आहत हुई कि मेरे विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करने लगे. कुछ तो रोने लगे. मगर मित्रों सच सच होता है. यह सच है कि नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक ओडीसा की एक अत्यंत उच्च हिंदू जाति- करन (कायस्थ) परम्परा से थे. इनकी पत्नी ज्ञान कौर सिख थीं लेकिन पुत्र नवीन प्रैक्टिशिंग क्रिश्चियन हैं. जबकि उनकी बहन एक ब्राह्मण परिवार में ब्याही है और भाई हिंदू है. नवीन पटनायक भले ही क्रिश्चियन हों पर वे असल मायने में धर्म निरपेक्ष हैं. वे अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में मंत्री भी थे और साल 2000 से ओडीसा के मुख्यमंत्री हैं. 2014 की मोदी आंधी में भी उनकी पार्टी बीजू जनता दल को 21 में से 20 सीटें मिलीं और विधानसभा में 147 में से 117 सीटें. वे अपार लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं।

Advertisement

नवीन पटनायक पर एक पैसे का भी आरोप नहीं है और ओडीसा के लोग उन्हें बहुत प्यार करते हैं. दुनियां में चूँकि ईसाई अत्यंत सभ्य, सुसंस्कृत और वैज्ञानिक परंपरा से आते हैं इसलिए उन्होंने ईसाईयत का अनुशरण किया. आज के सारे ज्ञान, विज्ञान, राजनीति और दर्शन पर ईसाई परम्परा का असर है. जिन पर नहीं है वही परस्पर लड़ते हैं।
नवीन पटनायक ओडीसा के मुख्यमंत्री हैं पर वे ओड़िया नहीं बोल पाते जबकि हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी के वे मास्टर हैं. प्रतिष्ठित दून स्कूल, वेलहेम स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस और किरोड़ीमल कालेज से. वे बहुत अच्छे लेखक भी हैं.
अंत में अल्लामा इकबाल की एक कविता, जो उन्होंने भगवान राम की शान में लिखी थी, दे रहा हूँ-
लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द.

Advertisement

सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द.
ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द.
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द.
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द .
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था

(वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

Read Also : कश्‍मीर में दिखा मोदी की सख्‍ती का असर, आतंकियों के लिए काल बना आर्मी का CASO