केरल के फैसले मलयालम और बिहार के फैसले हिंदी में क्यों न हो ?

यदि फैसले अंग्रेजी में हों तो एक-दो दिन बाद वे स्थानीय भाषा में क्यों नहीं उपलब्ध कराये जा सकते? कोविंद ने अपनी अदालतों पर हिंदी थोपने की बात नहीं की।

New Delhi Oct 31 : हमारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने केरल में वही बात कह दी, जो मैं अपने भाषणों में अक्सर कहा करता हूं। वे हमारे शायद ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने हमारी न्याय-व्यवस्था की सबसे गंभीर बीमारी पर उंगली रख दी है। उन्होंने केरल उच्च न्यायालय की हीरक जयंति के अवसर पर कहा कि अदालत के फैसले वादी और प्रतिवादी की भाषाओं में होने चाहिए, न कि सिर्फ अंग्रेजी में! केरल के फैसले मलयालम और बिहार के फैसले हिंदी में क्यों न हो। यदि फैसले अंग्रेजी में भी हों तो भी एक-दो दिन बाद वे स्थानीय भाषा में क्यों नहीं उपलब्ध कराये जा सकते ? ध्यान रहे कोविंद ने यहां अपनी अदालतों पर हिंदी थोपने की बात नहीं की है।

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अंग्रेजी थोपने का विरोध किया है। क्यों किया है ? क्योंकि अदालतों में अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण न्याय मिलने में देरी लगती है और ram nath kovindजिन्हें न्याय दिया जाता है, उन्हें ठीक से पता ही नहीं चलता कि उस फैसले के तर्क क्या-क्या हैं। उन्हें यह भी पता नहीं चलता कि उनके वकील ने अंग्रेजी में जो बहस उसके लिए की है, वह भी ठीक है या नहीं । ब्रिटिश चिंतक जॉन स्टुअर्ट मिल ने क्या खूब कहा है कि ‘देर से दिया गया न्याय, नहीं दिए गए के बराबर है’। हमारे देश में आज 3 करोड़ मुकदमे अधर में लटके हुए हैं।

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एक-एक मुकदमा तीन-तीन पीढ़ियों तक चलता है। हमारे सर्वोच्च न्यायालय के कई मुख्य न्यायाधीश मित्रों ने मुझे बताया कि अंग्रेजी की ram nath kovind 2अनिवार्यता के चलते हमारी बड़ी मुसीबत होती है लेकिन वह हमारी मजबूरी है। अगर कानून अंग्रेजी में है, बहस अंग्रेजी में है तो फैसला भी अंग्रेजी में ही सरल होता है। तो फिर दोष किसका है? हमारी निकम्मी सरकारों का ! हमारे अनपढ़ नेताओं का ! हमारे स्वार्थी भद्रलोक का ! हम अपना काम-काज अंग्रेजी में जैसे-तैसे धका ले जाते हैं लेकिन राष्ट्रपति कोविंद ने क्या ठीक कहा है कि हमारी अंग्रेजी की गुलाम अदालतें सबसे ज्यादा नुकसान देश के गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, दलितों और ग्रामीणों का करती हैं। उनकी सुध कौन लेगा ?

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राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठकर भी रामनाथ कोविंद इन लोगों को नहीं भूले हैं, यह बड़ी बात है। मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूं और उनसे ram nath kovind 3कहता हूं कि वे इसी तरह खरी-खरी बोलते रहें तो जब वे इस ध्वजमात्र पद पर नहीं रहेंगे, तब भी देश के इतिहास में उनका ध्वज फहराता रहेगा। (वरिष्‍ठ पत्रकार डॉ वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं। जरुरी नहीं है कि www.indiaspeaks.news उनके निजी विचारों से सहमत हो)