अंग्रेजी भाषा से मोह, क्या योग्यता का प्रमाण विदेशी भाषा है

अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने के पीछे ठोस तर्क थे। तब छात्र इंग्लिश विषय में मैट्रिक फेल कर जाने के कारण सिपाही में भी बहाल नहीं हो पाते थे।

New Delhi, Feb 05: कर्पूरी डिविजन’ को लेकर कई तरह की बातें की जाती रही हैं। पर, मेरा मानना है कि कर्पूरी ठाकुर के प्रति अन्य कारणों से नाराज लोग ‘कर्पूरी डिविजन’ कहते थे। कुछ लोग अब भी कहते हैं। हालांकि ‘कर्पूरी डिविजन’ वाली वह सुविधा भी कुछ ही साल रही। पर प्रचार ऐसा हुआ मानो उसी ने पूरी शिक्षा को बर्बाद कर दिया। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार ने भी अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की थी।कुछ अन्य राज्यों में भी ऐसा हुआ।पर कहीं किसी नेता के नाम से ऐसा ‘लांछन’ पूर्ण प्रचार नहीं हुआ। वैसे भी जब मैट्रिक स्तर पर अंग्रेजी की अनिवार्यता बिहार में खत्म की गयी थी, तब महामाया प्रसाद सिंहा की सरकार थी।पूरी सरकार उस निर्णय से सहमत थी।इसके लिए महामाया बाबू को किसी ने दोषी नहीं ठहराया।  कर्पूरी जी ही तब शिक्षा मंत्री थे। इंग्लिश की अनिवार्यता समाप्त करने का उन पर उनके सर्वोच्च नेता डा.लोहिया का भी दबाव था।

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यह तो वैसे ही हुआ कि युद्ध में हार जाएं तो रक्षा मंत्री दोषी और जीत जाएं तो प्रधान मंत्री को श्रेय ! अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने के पीछे ठोस तर्क थे। तब छात्र इंग्लिश विषय में मैट्रिक फेल कर जाने के कारण सिपाही में भी बहाल नहीं हो पाते थे। इस कारण से वंचित होने वालों में सभी जातियों व समुदायों के उम्मीदवार होते थे।इनमें अधिकतर गरीब घर के होते थे।जबकि आजाद भारत में किसी सिपाही के लिए व्यावहारिक जीवन में, वह भी बिहार में, इंग्लिश जानना बिलकुल जरूरी नहीं था। दूसरी बात यह है कि उन दिनों वर पक्ष मैट्रिक पास दुल्हन चाहता था।

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इंग्लिश में फेल हो जाने के कारण अच्छे परिवारों की लड़कियों की शादी समतुल्य हैसियत वालों के घरों में नहीं हो पाती थी। किसी घरेलू महिला के जीवन में अंग्रेजी की भला क्या उपयोगिता थी ? याद रहे कि तब परीक्षा में चोरी की सुविधा नहीं थी। अन्यथा.इस तरह की कुछ अन्य बातें भी थीं। तब इंग्लिश की अनिवार्यता समाप्त की गयी थी,उसकी पढ़ाई बंद नहीं की गयी थी।पर प्रचार ऐसा हुआ कि इंग्लिश को विलोपित कर दिया गया। कम्प्यूटर की पढ़ाई अनिवार्य नहीं रहने के बावजूद लोग कम्प्यूटर सीख कर आगे बढ़ ही रहे हैं। इंग्लिश तो अब अनिवार्य है।फिर भी शिक्षा का स्तर क्यों नहीं उठ रहा ?

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शिक्षा को बर्बाद करने के अन्य अनेक कारक रहे। प्रो.नागेश्वर प्रसाद शर्मा ने इस पर कई किताबें लिखी हैं। एक अंतिम बात। 1972 में तो तत्कालीन मुख्य मंत्री केदार पांडेय ने परीक्षा में कदाचार पूरी तरह बंद करवा दिया था।फिर किसने शुरू कराया ? पटना हाई कोर्ट के आदेश से सन 1996 में बिहार में मैटिक्र-इंटर की परीक्षाएं कदाचार-शून्य हुर्इं।दोबारा कदाचार किसने शुरू कराया ? 1980 में निजी स्कूलों के राजकीयकरण से पहले लगभग सभी शिक्षक मनोयोगपूर्वक पढ़ाते थे।क्या बाद में भी वैसी ही स्थिति रही ? यदि नहीं तो क्यों ?

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)