जॉर्ज समाजवादी आंदोलन के आखिरी कड़ी थे, जो दल का प्रतिनिधित्व करने को बाध्य हुए

जॉर्ज समाजवादी आंदोलन कि आखरी कड़ी हैं (शायद) जिसने 77 में समाजवादी आंदोलन को विसर्जीत किया और आंदोलन से खिसक कर, एक दल का प्रतिनिधित्व करने को बाध्य हुए।

New Delhi, Mar 09 : समाजवादी आंदोलन का एक प्रमुख विषय था ‘ हिमालय बचाओ ‘ । डॉ लोहिया ने इस सवाल पर देश और विदेश में इस सवाल को लेकर बहुत बड़ा जनमत बनाया और हिमालय को केंद्र में रखा । हिमालय की कोख में बैठा तिब्बत हमारा माथा है , आबरू है और एक सभ्यता है हमे इसकी हिफाजत करनी चाहिए । देश प्रेम के इस आंदोलन में जनसंघ शामिल रहा । अटल जी संजीदगी से इस आंदोलन के साथ रहे और तिब्बत से चले धर्म गुरु दलाई लामा के जबरदस्त समर्थक रहे । उसी संघ की तरफ से आज मोदी सरकार तिब्बत से ‘भी ‘ कन्नी काट रही है। हम आपको जॉर्ज का इस आंदोलन से जुड़ाव का किस्सा सुना रहा हूँ ।

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पिछले दिनों धर्मगुरु दलाई लामा जॉर्ज को देखने गए । जार्ज की हालत देख कर जार्ज के घुटने को पकड़ कर रोने लगे – ‘ अब तिब्बत की लड़ाई कौन लड़ेगा ? ‘ ये को जुड़ाव राजनीति में रहा वह अब गायब है हमारी अगली पीढ़ी को यह जानना जरूरी है कि हमारे बुनियादी सवाल क्या क्या हैं ? जब तक इसकी पड़ताल तय करके नही बैठेंगे , तब तक आप सीधी चाल चल ही नही पाएंगे । कभी धर्म के नाम पर ,कभी जाति के नाम लंगड़ाते रहेंगे । समाजवादी आंदोलन का दायरा बहुत बड़ा रहा । पिछली पोस्ट पर एक सज्जन ने समाजवाद को परिवारवाद से जोड़ कर एक टिप्पणी लिख मारी । उनकी समझ समाजवाद मतलब मुलायम सिंह से अखिलेश वाया शिवपाल यादव है। भाई ! ये समाजवादी आंदोलन में शामिल रहे इससे इनकार कौन करेगा ,लेकिन इन्हें सत्ता ने खराब किया आप मेहरबानी करके पेंदी में जले चावल के एक थक्के से पूरे बटलोई को तो मत खराब करिये ।

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एक दिन अल सुबह तीन बजे जार्ज का फोन आया । ( जार्ज शाम 6 बजे के बाद कट लेते थे बात नही करते थे, लेकिन भोर में जब मर्जी आये बुला लेते थे ) बोले तुम 7 बजे कर्नाटक भवन चले जाना वहां निजलिंगगप्पा जी होंगे उनसे बात कर लो और उन्हें दिन तारीख समय और जगह सब बता देना और निमंत्रित कर देना ‘ तिब्बत बचावो ‘ आयोजन के मुख्य अतिथि वही होंगे । हिदायत भी दिए – कांग्रेसी समझ के मत बात करना तिब्बत का सवाल है, उन्होंने तिब्बत के सवाल पर बहुत काम किया है । बहरहाल आयोजन हुआ । हम तिब्बत के निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री से मिलने लोदी रोड गया , बुलाया । आयोजन बहुत कारगर रहा । देश और विदेश के अखबारी प्रतिनिधियों को देख कर हैरान रह गया । अध्यक्षता किये भाई लाडली मोहन निगम और मंच पर निजलिंगगप्पा जी , अटलबिहारी वाजपेयीजी जॉर्ज वगैरह ने तिब्बत के सवाल पर जो बोला वह बहुत ही कारगर रहा ।

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अजित अंजुम जी ने जो बात पिछली पोस्ट में कही और जिस शिद्दत के साथ बोले वह वाकई वक्त की जरूरत है , यह पीढ़ी बहुत कुछ नही जानती और जो जानती है उसका जानना उसके लिए निहायत ग़ैरजरूरी है । गलती उसकी नही है , हमारी है । हमे तो हमसे पिछली पीढ़ी से बहुत कुछ मिला हम आज जो कुछ भी हैं उन्ही लोंगो से मिले प्राप्य पर चलफिर रहे हैं ।
जी ! अब असल मुद्दे पर आइये। रात को हम जार्ज से भिड़ गए । निजलिंगगप्पा क्यों ?
बहुत दिलचस्प कथा सुनने को मिली
तिब्बत पर जब चीन का दबाव बढ़ना शुरू हुआ और तिब्बत ने जब भारत से शरण मांगा तो पंडित नेहरू ने उसे स्वीकार कर लिया। लेकिन इन तिब्बती शरणार्थियों को पुनर्वासित कैसे और कहां किया जाय इसके लिए पंडित नेहरू ने सर्वानुमति चाही । इस बैठक में डॉ लोहिया , जे पी के अलावा कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री निजलिंगगप्पा भी शामिल रहे । और सबसे बड़ा काम निजलिंगगप्पा जी ने किया । मैसूर के बगल पहाड़ी पर बायला कुप्पे की खूबसूरत वादी में नया तिब्बत ही बसा दिए। आज वह तिब्बती आबादी कन्नड़ की सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थली है ।
धर्मशाला से ज्यादा खूबसूरत आबादी कुर्ग के पहाड़ को सुशोभित कर रही है ।
जॉर्ज समाजवादी आंदोलन कि आखरी कड़ी हैं (शायद) जिसने 77 में समाजवादी आंदोलन को विसर्जीत किया और आंदोलन से खिसक कर, एक दल का प्रतिनिधित्व करने को बाध्य हुए ।

जॉर्ज ने बड़ा पाप भी किया है ।
कल / जारी

(Chanchal BHU के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)