शराब पीने वाला ‘शराबी’ कहलाता है, उसे ‘सेक्युलर’ कबसे कहा जाने लगा ?

“भाड़ में जाए ऐसी सेक्युलरिज़्म। शराब पीने वाला शराबी कहलाता है, उसे सेक्युलर कब से कहा जाने लगा?

New Delhi, May 06 : बातों-बातों में एक मित्र अनेक प्रसंगों से साबित करने का प्रयास कर रहे थे कि जिन्ना सेक्युलर थे। वह शराब पीते थे। सूअर का मांस खाते थे। नमाज नहीं पढ़ते थे। पाकिस्तान बनाया तो अल्पसंख्यकों को अधिकार देने की बात कही। वगैरह-वगैरह।

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मैंने कहा- “भाड़ में जाए ऐसी सेक्युलरिज़्म। शराब पीने वाला शराबी कहलाता है, उसे सेक्युलर कब से कहा जाने लगा? गाय का मांस खाने वाला बुरा होता है, तो सूअर का मांस खाने वाला अच्छा कैसे हो गया? नमाज नहीं पढ़ता था, पर (अ)धर्म की ठेकेदारी करता था, तो सेक्युलर कैसे हो गया? पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को अधिकार देने की बात ढोंग थी, क्योंकि अगर यही करना था तो पाकिस्तान बनाया क्यों?”
भाई, अगर आप शराब न पीते हों, सूअर का मांस न खाते हों, पांच वक्त नमाज़ पढते हों, तो मुझे आपसे कोई दिक्कत नहीं। शर्त बस इतनी है कि मुसलमानों की ठेकेदारी न करते हों या कोई ऐसा काम नहीं करते हों, जिससे हिन्दुओं और मुसलमानों के मन में एक-दूसरे के लिए शंका, नफ़रत या भय का भाव पैदा होता हो।

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जिस व्यक्ति ने अपनी महत्वाकांक्षा के लिए मुसलमानों को हिन्दुओं से लड़वा कर लाखों को मरवा दिया। जिस व्यक्ति ने भारत के मुसलमानों को अपने ही देश में पराया बना दिया। जिस व्यक्ति ने पाकिस्तान के मुसलमानों को कट्टरपंथी और आतंकवादी बना दिया। जिस व्यक्ति ने बांग्लादेश के मुसलमानों को एक कटा हुआ अंग होने के अहसास से भर दिया। वह व्यक्ति भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के 150 करोड़ से अधिक हिन्दुओं और मुसलमानों का अपराधी है।

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मैं तो आज हैरान इस बात पर हूं कि वह व्यक्ति केवल एकीकृत भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश में एक राष्ट्रद्रोही ही नहीं, बल्कि एक मुस्लिम-द्रोही भी था, फिर उसकी तस्वीर के प्रति कुछ मुसलमान इतने आसक्त क्यों दिखाई दे रहे हैं?
इसलिए, एएमयू के भाइयो-बहनो, आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि उस “पागल” की तस्वीर उतार दो। वह ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसके लिए आप कोई लड़ाई लड़ें। कुछ लोग यही तो साबित करना चाहते हैं कि आपकी आत्मा भारत में कम, जिन्ना के पाकिस्तान में ज्यादा है। और आप बेकार की ज़िद में उनका हथियार बन रहे हैं?

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)