नागरिकता संशोधन बिल पर अमेरिकी आयोग ने कही बड़ी बात, मोदी सरकार ने दिये ये तर्क

अमेरिकी आयोग द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक बड़ी समस्या बनने वाला है।

New Delhi, Dec 10 : नागरिकता संशोधन बिल सोमवार को लंबी बहस के बाद आखिरकार लोकसभा से पास हो गया, इस बिल को लेकर जहां भारतीय वैज्ञानिकों, स्कॉलर्स और कई पॉलिटिकल पार्टियों ने मोर्चा खोल दिया है, तो वहीं अमेरिकी आयोग (यूएनसीआईआरएफ) ने भी चिंता जताई है, अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के मामलों को देखने वाली संघीय अमेरिकी आयोग ने इसे मोदी सरकार द्वारा लिया गया खतरनाक मोड़ बताया है।

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नागरिकता के लिये आवेदन करने के पात्र होंगे
लोकसभा में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित बिल के मुताबिक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना की वजह से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आये हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग को अवैध प्रवासी के तौर पर नहीं देखा जाएगा, ये सभी लोग भारत में नागरिकता के लिये आवेदन करने के पात्र बन जाएंगे।

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अमेरिकी आयोग ने चेताया
अमेरिकी आयोग द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक बड़ी समस्या बनने वाला है, बयान में ये भी कहा गया है कि अगर नागरिकता संशोधन विधेयक दोनों संसद के सदन से पास हो जाता है, तो अमेरिकी सरकार को अमित शाह और दूसरे मुख्य नेताओं के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिये, क्योंकि इस बिल के पास होने से बड़े खतरे हैं।

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पक्ष में पड़े 311 वोट
आपको बता दें कि लोकसभा में सोमवार देर रात तक चली बहस के बाद रात करीब पौने 12 बजे वोटिंग की प्रक्रिया पूरी हुई, इस दौरान नागरिकता संशोधन बिल के पक्ष में कुल 311 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में सिर्फ 80 वोट आये, लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद अब माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार इसे मंगलवार को राज्यसभा में पेश करेगी।

बिल को लेकर अमित शाह का तर्क
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल को लेकर कई तर्क दिये, उन्होने कहा कि मैं सदन के माध्यम से पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं, कि ये विधेयक कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है, विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, अगर देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होता, तो मुझे विधेयक लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, शाह ने कहा कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है, ये कहना गलत है, क्योंकि भारत में 1954 में 84 फीसदी हिंदू थे, जबकि 2011 में कम होकर 79 फीसदी हो गये, वहीं मुसलमान 1951 में 9.8 फीसदी थे, जो 2011 में 14.8 फीसदी हो गये, उन्होने कहा कि धर्म के आधार पर भेदभाव ना हो रहा है, और ना आगे होगा।