जब आदमी को रोटी की चिंता नहीं होगी, तभी वो आपके संदेशों पर अमल कर पाएगा प्रधानमंत्री जी!

लॉकडाउन के पहले चरण में वो सबसे पहले शुरुआती कुछ दिनों में मजदूरों को उनके घर भेजते और बाद में लॉकडाउन पूरी तरह से लागू करते।

New Delhi, May 18 : जर्मन फ़ुटवेयर ब्रैंड वॉन वेल्स चीन से अपना कारोबार समेटकर भारत ला रहा है। वह अब यहां अपनी प्रॉडक्शन यूनिट लगाएगा। इससे भी अच्छी बात यह है कि यह यूनिट दिल्ली, मुंबई या किसी राज्य की राजधानी में नहीं, बल्कि आगरा जैसे शहर में लगेगी। इससे एक दिन पहले खबर आई थी कि भारतीय कंपनी लावा भी अपना कारोबार चीन से समेटकर वापस भारत आ रही है।
मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं, लेकिन एक आम दिमाग की समझ के हिसाब से कह रही हूं कि स्थानीय स्तर पर इंडस्ट्रीज़ का पनपना और सर्वाइव करना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा हम समय-समय पर इसी तरह मजदूरों का पलायन और रिवर्स पलायन देखते रहेंगे।

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अभी मजदूर वापस लौटने को मजबूर हैं, कल को हम भी होंगे। वो हर इंसान जो अपने घर से दूर दूसरे शहर में नौकरी कर रहा है, जब सिर पर मुसीबत आएगी तो उसे अपना घर ही याद आएगा। आगे-पीछे का सोचे बिना वो घर ही जाएगा।
गांधी परिवार जैसे विदेश में पढ़े-लिखे लोग एक बार को भारत की जमीनी हकीकत न समझें तो समझ आता है, मगर मोदी को तो देश के मजदूर वर्ग का ख्याल सबसे पहले आना चाहिए था। उनको पता होना चाहिए था कि अचानक लॉकडाउन किस कदर पैनिक क्रिएट करेगा और वो भी तब जब देश में पैनिक क्रिएट करवाने वाले लाखों लोग बैठे हैं।

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लॉकडाउन के पहले चरण में वो सबसे पहले शुरुआती कुछ दिनों में मजदूरों को उनके घर भेजते और बाद में लॉकडाउन पूरी तरह से लागू करते। हो सकता है कि इससे कोरोना के केसेज़ शुरुआत में ही तेज़ी से बढ़ जाते, लेकिन राज्यों की सीमा पार कराकर मजदूरों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था तो तब भी की ही जा सकती थी।
वैसे भी, मजदूरों का यह रिवर्स पलायन लॉकडाउन के पहले चरण से ही शुरू तो हो ही गया था। वो कैसे भी करके अपने घर तो वापस जाने ही लगे थे। लेकिन अगर सरकारी व्यवस्था करवा दी जाती, तो कम से कम तब यह पैनिक नहीं क्रिएट होता और इतने मजदूरों को असमय अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती।

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मगर हुआ ये कि एक तरफ जब तीसरे चरण में इंडस्ट्रीज़ खोलने की छूट दी, तभी मजदूरों को घर जाने की छूट दी। कायदे से तो अब मजदूरों को वापस बुलाने का वक्त होता, मगर अब मजदूर किसी भी तरह से घर जा रहे हैं। खैर, अब जब घर जा ही रहे हैं तो कम से कम अब उनके घर पर रुकने की कोई स्थायी व्यवस्था की जानी चाहिए। उनको उनके क्षेत्र में ही रोजगार मिलना चाहिए।
न सिर्फ़ आगरा जैसे महानगर, बल्कि इनके अलावा दूसरे छोटे शहरों में भी इंडस्ट्रीज़ लगानी चाहिए और बंद पड़े उद्योगों को फिर से शुरू करना चाहिए। इस प्रयास में राज्य सरकारों को पूरा सहयोग करना चाहिए और उद्यमियों को परेशान करने से बाज आना चाहिए।
तभी जाकर हम हर मोर्चे पर ऐसी महामारियों से टक्कर ले पाएंगे। जब आदमी को रोटी की चिंता नहीं होगी, तभी वो आपके संदेशों पर अमल कर पाएगा प्रधानमंत्री जी। और तभी इस देश के गिद्धरूपी कम्युनिस्टों के घड़ियाली आंसू भी सूख पाएंगे।

(तृप्ति शुक्ला के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)